मंगल ग्रह का परिचय और प्रभाव मंगल की पौराणिक मान्यताहिंदू मान्यता के अनुसार मंगल देवी पृथ्वी के पुत्र हैं, परंतु इस घटना के संबंध में दो पौराणिक कथाएं मिलती है। एक अंधका सुर व शिव युद्ध व दूसरा श्रीहरि के वाराह रूप से संबंध हैं। एक कथा में मंगल को शिव पृथ्वी का पुत्र बताया गया है तो दूसरे में विष्णु व पृथ्वी का यह दोनों ही कथाएं हिंदू पुराणों में पायी जाती हैं। इसके बाद ही मंगल को ग्रह की उपाधि मिली और ये सौर मंगल में स्थापित हुए।यंत्र – मंगल यंत्रमंत्र – ओम मंगलाय नमःरत्न – मूँगारंग – लालजड़ – अनंत मूलउपाय – मंगल ग्रह की शांति से लिए मंगलवार का उपवास व हनुमान की आराधना करनी चाहिए। लाल वस्त्र का दान करने से भी मंगल शांत होते हैं। उज्जैन में स्थित मंगलनाथ मंदिर में मंगल दोष के लिए पूजा करना सबसे फलदायी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना ब्रम्हाजी ने की थी।मंगल का मानव जीवन पर प्रभावमंगल का सबसे अधिक प्रभाव जातक के शरीर व स्वभाव पर पड़ता है। ज्योतिष की माने तो मंगल यदि लग्न भाव में स्थित है तो ऐसी स्थिति में जातक आकर्षक व सुंदर व्यक्तित्व का धनि होता है। इसके साथ ही ऐसे जातक क्रोधी स्वभाव के होते हैं। चीजें अनुरूप न मिलने पर आवेश में आ जाते हैं। ये जातक सेना व सुरक्षा विभाग में कार्य करते हैं।जिन जातकों का मंगल बली होता है। वे जातक निर्णय लेने में जरा भी नहीं हीचकिचाते, जो निर्णय लेना होता है उसे ले लेते हैं। इसके साथ ही ऊर्जावाल रहता है। विपरीत से विपरीत परिस्थिति में वह पीछे नहीं हटता है। संघर्ष को हसते हुए अपनाते हैं। यदि आपका मंगल बली है तो यह केवल आपके लिए ही नहीं अच्छा है बल्कि आपके परिवार के सदस्यों के लिए भी शुभ है। ऐसे में आपके भाई- बहन करियर में अच्छा ग्रोथ करेंगे। परंतु यदि आप मंगल से पीड़ित हैं तो आपको काफी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। कुंडली में मंगल का कमजोर होना उचित नहीं माना जाता है। ऐसी स्थिति में परिवारीक जीवन सुखमय नहीं होता है। दुर्घटना होने की भी संभावना बनी रहती है ।मंगल और साहसग्रहो के कारकत्व में आज बात करते है, मंगलदेव जी के बारे मेंकिसी भी कुंडली मे फलित करने हेतु कारक विचार फलादेश की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है, इसी सम्बन्ध में आज मंगल जी के भाव कारको के बारे में आपको अवगत कराया जाएगा।️मंगल देव कुंडली के बारह भावो में से तीसरे( पराक्रम) भाव, षष्ठ( रोग ओर शत्रु ) भाव के कारक माने जाते है। तीसरा भाव- इस भाव का कारक मंगल है। इसे सहज भाव भी कहते हैं। कुण्डली को ताकत देने वाला भाव इसे ही कहा गया है। भाग्य के ठीक विपरीत अपनी बाजुओं की ताकत से कुछ कर दिखाने वाले लोगों का यह भाव बहुत शक्तिशाली होता है। भाग्य से लड़ने की शक्ति भी इसी भाव से देखी जाती है।षष्ठ भाव- इसे रोग का घर भी कहते हैं। रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता भी मंगल प्रधान लोगो मे अच्छी होती है। ऐसे में यदि मंगल कमजोर हो जाये तो जातक अपने भाग्य का तो खा लेता है परन्तु मेहनत से उसे बदलने की चेष्ठा नही कर पाता।कर्म भाव से गणना करने पर नवम भाव भी यही है, अर्थात कर्म को भी बदलने वाला भाव। बड़ी बड़ी परीक्षाओ ओर जंग में इसी भाव से हार जीत सुनिश्चित होती है।कालपुरुष की कर्म राशि मकर में यह आपको हमेशा विजयी आपकी मेहनत के फलस्वरूप ही बना पाते है। कोई भी ग्रह चाहे मारक भले ही हो, लेकिन आपकी जिंदगी में उसकी उपयोगिता बहुत मायने रखती है।
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