ज्योतिष में गुरु चांडाल योग के प्रभाव एवं उपाय
गुरु का राहु या केतु की युति से गुरु चांडाल योग /दोष का निर्माण होता है। जब भी कुंडली में गुरु और राहु ग्रह एक ही राशि में विराजमान होते तो यह कहा जाता है कि आपके कुंडली में गुरु चांडाल योग/दोष है। यदि किसी की जन्मकुंडली में गुरु (बृहस्पति) के साथ राहु या केतु की युति है अथवा गुरु का राहु या केतु के साथ दृष्टि आदि से कोई संबंध बन रहा हो तो ऐसी स्थिति में कुंडली में गुरु चांडाल योग का निर्माण होता है।
गुरु चांडाल योग दोष का जातक के ऊपर प्रभाव
किसी की कुंडली में यदि राहु का गुरु के साथ संबंध बन रहा है तो वह व्यक्ति बहुत अधिक भौतिकवादी होता है जिसके कारण ऐसा व्यक्ति अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार होता है। वह अधिक से अधिक धन कमाकर अपनी इच्छा को मूर्त रूप देना चाहता है और इसके लिए वह अनैतिक अथवा अवैध कार्यों का चुनाव कर लेता है इसमें संदेह नहीं है बल्कि अनुभवजन्य है।
राहु केतु का किसी कुंडली में गुरु के साथ संबंध स्थापित होने पर व्यक्ति के चरित्र में अमर्यादित विकृतिया आ जातीं हैं जिसके कारण वह पाखंडी, अहंकारी, हिंसक, धार्मिक कट्टरवादी बन जाता है जो परिवार तथा समाज के लिए ठीक नहीं माना जा सकता है। परन्तु इस बात का भी जरूर ध्यान रखना चाहिए कि गुरु चांडाल योग प्रत्येक व्यक्ति को अशुभ प्रभाव नहीं देता बल्कि कई बार यह भी देखा गया है व्यक्ति बहुत अच्छे चरित्र तथा उत्तम मानवीय गुणों से युक्त होते है तथा इन्हें सामाजिक पद और प्रतिष्ठा की भी प्रप्ति होती है।
इस दोष के सम्बन्ध में फलादेश करने से पूर्व गुरु तथा राहु के स्वभाव का भलीभाँती अवश्य ही परीक्षण कर लेना चाहिए। इसके लिए इस बात का जरूर ख्याल रखना चाहिए की गुरु चांडाल योग किस स्थान में बन रहा है और कौन सा ग्रह शुभ है तथा कौन सा ग्रह अशुभ है या दोनों अशुभ है परिणाम इसके ऊपर निर्भर करता है।
यदि दोनों ग्रह अशुभ अवस्था में है तो अवश्य ही अशुभ फल प्रदान करेगा वैसी स्थिति में गुरु चांडाल योग जातक को एक घृणित व्यक्ति बना सकता है जिस स्थान /भाव में यह योग बनेगा उस स्थान विशेष के फल को खराब करेगा तथा ऐसा जातक धर्म ,जाति, समुदाय के आधार पर लोगों को हानि अथवा कष्ट पहुंचा सकता है।
शुभ गुरु तथा शुभ केतु का फल
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यदि शुभ गुरु तथा शुभ केतु के संयोग से गुरु चांडाल योग बन रहा है तो वैसा जातक सामजिक तथा आध्यात्मिक होता है। समाज सेवा ही अपना धर्म समझकर कार्य करता है। जातक में मानवीय गुण कूट-कूट कर भरा होता है और कभी कभी तो मानव कल्याण में ही अपना पूरा जीवन निकाल देता है।
शुभ गुरु तथा शुभ राहु का फल
यदि शुभ गुरु और शुभ राहु द्वारा गुरु चांडाल योग बन रहा है तो व्यक्ति को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शुभ फल प्रदान की प्रप्ति होगी।
गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। एक अच्छा ज्योतिषी कुण्डली देख कर यह बता सकता है कि हमे गुरु को शांत करना उचित रहेगा या राहु के उपाय जातक से करवाने पड़ेंगे। अगर चाण्डाल दोष गुरु या गुरु के मित्र की राशि या गुरु की उच्च राशि में बने तो उस स्थिति में हमे राहु देवता के उपाय करके उनको ही शांत करना पड़ेगा ताकि गुरु हमे अच्छे प्रभाव दे सके। राहु देवता की शांति के लिए मंत्र-जाप पुरे होने के बाद हवन करवाना चाहिए तत्पश्चात दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है. अगर ये दोष गुरु की शत्रु राशि में बन रहा हो तो हमे गुरु और राहु देवता दोनों के उपाय करने चाहिए गुरु-राहु से संबंधित मंत्र-जाप, पूजा, हवन तथा दोनों से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।
१. यदि लग्न में गुरू चाण्डाल योग बन रहा है तो व्यक्ति का नैतिक चरित्र संदिग्ध रहेगा। धन के मामलें में भाग्यशाली रहेगा। धर्म को ज्यादा महत्व न देने वाला ऐसा जातक आत्म केन्द्रित नहीं होता है।
२. यदि द्वितीय भाव में गुरू चाण्डाल योग बन रहा है और गुरू बलवान है तो व्यक्ति धनवान होगा। यदि गुरू कमजोर है तो जातक धूम्रपान व मदिरापान में ज्यादा आशक्त होगा। धन हानि होगी और परिवार में मानसिक तनाव रहेंगे।
३. तृतीय भाव में गुरू व राहु के स्थित होने से ऐसा जातक साहसी व पराक्रमी होती है। गुरू के बलवान होने पर जातक लेखन कार्य में प्रसिद्ध पाता है और राहु के बलवान होने पर व्यक्ति गलत कार्यो में कुख्यात हो जाता है।
४. चतुर्थ घर में गुरू चाण्डाल योग बनने से व्यक्ति बुद्धिमान व समझदार होता है। किन्तु यदि गुरू बलहीन हो तो परिवार साथ नहीं देता और माता को कष्ट होता है।
५. यदि पंचम भाव में गुरू चाण्डाल योग बन रहा है और बृहस्पति नीच का है तो सन्तान को कष्ट होगा या सन्तान गलत राह पकड़ लेगा। शिक्षा में रूकावटें आयेंगी। राहु के ताकतवर होने से व्यक्ति मन असंतुलित रहेगा।
६. षष्ठम भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में यदि गुरू बलवान है तो स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और राहु के बलवान होने से शारीरिक दिक्कतें खासकर कमर से सम्बन्धित दिक्कतें रहेंगी एंव शत्रुओं से व्यक्ति पीडि़त रह सकता है।
७. सप्तम भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में यदि गुरू पाप ग्रहों से पीडि़त है तो वैवाहिक जीवन कष्टकर साबित होगा। राहु के बलवान होने से जीवन साथी दुष्ट स्वभाव का होता है।
८. यदि अष्टम भाव में गुरू चाण्डाल योग बन रहा है और गुरू दुर्बल है तो आकस्मिक दुर्घटनायें, चोट, आपरेशन व विषपान आदि की आशंका रहती है। ससुराल पक्ष से तनाव भी बना रहता है। इस योग के कारण अचानक समस्यायें उत्पन्न होती है।
९. नवम भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में गुरू के क्षीण होने से धार्मिक कार्यो में कम रूचि होती है एंव पिता से वैचारिक सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते है। पिता के लिए भी यह योग कष्टकारी साबित होता है।
१०.दशम भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में व्यक्ति में नैतिक साहस की कमी होती, पद, प्रतिष्ठा पाने में बाधायें आती है। व्यवसाय व करियर में समस्यायें आती है। यदि गुरू बलवान है तो आने वाली बाधायें कम हो जाती है।
११. एकादश भाव में बनने वाले गुरू चाण्डाल योग में राहु के बलवान होने से धन गलत तरीके से भी आता है। दुष्ट मित्रों की संगति में पड़कर व्यक्ति गलत रास्ते पर भी चल पड़ता है। यदि गुरू बलवान है तो राहु के अशुभ प्रभावों को कुछ कम कर देगा।
१२. द्वादश भाव में बन रहेे गुरू चाण्डाल योग में आध्यात्मिक आकांक्षाओं की प्राप्ति भी गलत मार्ग से होती है। राहु के बलवान होने से शयन सुख में कमी रहती है। आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया रहता है। गुरू यदि बलवान है तो चाण्डाल योग का दुष्प्रभाव कम रहता है।
शांति के सामान्य उपाय
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प्रतिदिन यथा सामर्थ्य गुरु मंत्र का जाप करें अथवा अपने गुरु की सेवा करने से सभी दोषों को शांति स्वतः ही हो जाती है।
भगवान विष्णु के सहस्र नाम का पाठ करें।
भैरव स्त्रोत व चालीसा का नित्य पाठ करें।
गुरू को बलवान करने के लिए केसर व हल्दी का तिलक लगाए एवं भोजन में प्रयोग करें।
गुरूवार व शनिवार को मदिरा एंव धूम्रपान का सेंवन कदापि न करें।
गुरूवार के दिन पीपल पेड़ के सेवा करें एंव वृद्धजनों को भोजन करायें।
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