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बसंत पंचमी
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बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यतः विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। बसंत पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इससमय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं।

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नील सरस्वती स्त्रोत का पाठ
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वसन्त पञ्चमी पर सरस्वती मूल मंत्र की कम से कम 1 माला जप जरूर करना चाहिए।

मूल मंत्र : “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा”

ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य को ब्रह्माण्ड की आत्मा, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक समृद्धि, औषधि तथा ज्ञान और बुद्धि का कारक ग्रह माना गया है। इसी प्रकार पंचमी तिथि किसी न किसी देवता को समर्पित है। बसंत पंचमी को मुख्यतः सरस्वती पूजन के निमित्त ही माना गया है। इस ऋतु में प्रकृति को ईश्वर प्रदत्त वरदान खेतों में हरियाली एवं पौधों एवं वृक्षों पर पल्लवित पुष्पों एवं फलों के रूप में स्पष्ट देखा जा सकता है।

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बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से वाणी मधुर होती है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है, प्राणियों को सौभाग्य प्राप्त होता है, विद्या में कुशलता प्राप्त होती है। पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता है तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है। इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्प माला, श्वेत वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल, तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन करें। फिर इस प्रकार हाथ जोड़कर मंत्रोच्चार करें-

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“यथा वु देवि भगवान ब्रह्मा लोकपितामहः।
त्वां परित्यज्य नो तिष्ठंन, तथा भव वरप्रदा।।
वेद शास्त्राणि सर्वाणि नृत्य गीतादिकं चरेत्।
वादितं यत् त्वया देवि तथा मे सन्तुसिद्धयः।।
लक्ष्मीर्वेदवरा रिष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभामतिः।
एताभिः परिहत्तनुरिष्टाभिर्मा सरस्वति।।

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सरस्वती पूजा के लिए नैवैद्य (ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार)

ताजा मक्खन, दही, दूध, धान का लावा, तिल के लड्डू, सफेद गन्ना और उसका रस, उसे पकाकर बनाया हुआ गुड़, स्वास्तिक (एक प्रकार का पकवान), शक्कर या मिश्री, सफेद धान का चावल जो टूटा न हो (अक्षत), बिना उबाले हुए धान का चिउड़ा, सफेद लड्डू, घी और सेंधा नमक डालकर तैयार किये गये व्यंजन के साथ शास्त्रोक्त हविष्यान्न, जौ अथवा गेहूँ के आटे से घृत में तले हुए पदार्थ, पके हुए स्वच्छ केले का पिष्टक, उत्तम अन्न को घृत में पकाकर उससे बना हुआ अमृत के समान मधुर मिष्टान्न, नारियल, उसका पानी, कसेरू, मूली, अदरख, पका हुआ केला, बढ़िया बेल, बेर का फल, देश और काल के अनुसार उपलब्ध ऋतुफल तथा अन्य भी पवित्र स्वच्छ वर्ण के फल – ये सब नैवेद्य के समान हैं।सुगन्धित सफेद पुष्प, सफेद स्वच्छ चन्दन तथा नवीन श्वेत वस्त्र और सुन्दर शंख देवी सरस्वती को अर्पण करना चाहिये। श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत भूषण भी भगवती को चढ़ावे।

नील सरस्वती स्त्रोत का पाठ
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स्मरण शक्ति प्राप्त करने के लिए वसंत पञ्चमी से शुरू करके प्रतिदिन याज्ञवल्क्य द्वारा रचित भगवती सरस्वती की स्तुति करनी चाहिए।

पूजा कक्ष को अच्छी तरह साफ़ किया जाता है, तथा सरस्वती देवी की प्रतिमा को पीले फूलों से सजे लकड़ी के मंडप पर रखा जाता है। मूर्ति को भी पीत पुष्पों से सजाया जाता है। एवं पीत परिधान पहनाये जाते हैं। पीला रंग हिन्दुओं का शुभ रंग है। इसी प्रतिमा के निकट गणेश का चित्र या प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। परिवार के सभी सदस्य तथा पूजा में सम्मिलित होने वाले सभी व्यक्ति भी पीले वस्त्र धारण करते हैं। बच्चे वयस्क देवी को प्रणाम करते हैं। बेर व संगरी प्रसाद की मुख्य वस्तुएँ हैं तथा इन्हीं के साथ पीली बर्फी या बेसन लड्डू भी रखे जाते हैं।

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आज के दिन बच्चे/जवान/बूढ़े सभी लोग पीले रंग के वस्त्र पहने।

आज माँ शारदा को पीले चावल (ताहरी), पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का भोग लगाएं और घर के सभी लोग खाएं।

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