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मार्गशीर्ष माह और गोपीयों द्वारा माँ कात्यायनी का पूजन
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जैसा कि आप सभी को ज्ञात होगा कि कल से मार्गशीर्ष माह का आरम्भ हो रहा है, कल मार्गशीर्ष माह का प्रथम दिवस है, ब्रजमंडल क्षेत्र में और सभी कृष्ण भक्तो के लिए मार्गशीर्ष माह का विशेष महत्त्व है, जानिए क्यों ।

श्रीमद् भागवत महापुराण में लेख है कि कार्तिक माह में गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कात्यायनी देवी का पूजन कर व्रत रखा था। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी इ’छा पूरी करने के लिए शरद पूर्णिमा को महारास रचाया था और उसी समय से महिलाएं एवं विशेष रूप से अविवाहित कन्याएं यह व्रत रखकर कान्हा जैसा पति पाने के लिए मां कात्यायनी का पूजन करती हैं।

नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है, किन्तु इसके अतिरिक्त हेमंत ऋतु के प्रथम मास मार्गशीर्ष में पूरे महीने मां कात्यायनी की पूजा का विधान श्रीमद् भागवत महापुराण में बताया गया है। भगवान नन्दनन्दन श्री कृष्णचंद्र की पावन पुण्यमय क्रीड़ाभूमि श्रीधाम वृन्दावन में श्री यमुना के सन्निकट राधाबाग स्थित अति प्राचीन सिध्दपीठ के रूप में श्री मां कात्यायनी देवी विराजमान हैं। भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्राय: सभी शास्त्रों में मिलता है।

“व्रजे कात्यायनी परा” अर्थात वृन्दावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्ति महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है। वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी पीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिध्दपीठ है। देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के बाईसवें अध्याय में इसका उल्लेख किया है-

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥

हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं। भगवान् कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिंदी – यमुना के तट पर मां कात्यायनी की पूजा की थी।

ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित है देवी कात्यायनी। इनकी उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।माता की पूजा से अर्थ ,धर्म, काम और मौक्ष चारों फलो की प्राप्ति सहज रूप से हो जाती है। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं।

इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरद मुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है। जिस कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो उन्हें मां कात्यायनी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

माँ का ध्यान करने के लिए निम्न मंत्रों का जाप करें…

“चन्द्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना !
कात्यायनी शुभं दघाद्देवी दानवघातिनी “
ॐ कात्यायन्यै नम:

वृंदावन का शक्तिपुंज कात्यायनी पीठ
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मान्यता है कि वृंदावन की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए भगवती कात्यायनी की बालू से मूर्ति बनाई और पूजा-अर्चना की। यह आज पीठ के रूप में विद्यमान है।
वृंदावन के राधाबागमें भगवती कात्यायनी का पौराणिक शक्तिपीठ है। इसका उल्लेख ब्रह्मवैव‌र्त्तपुराणऔर आद्यास्तोत्रमें मिलता है। तंत्रशास्त्रके ग्रंथों के अनुसार, ब्रज में सती के केश गिरे थे।

गोपियों द्वारा माँ कात्यायनी की पूजा
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श्रीमद्भागवत महापुराणके दशम स्कंध में ब्रज की गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के उद्देश्य से भगवती कात्यायनी की पूजा और व्रत करने का वर्णन मिलता है। इस कथा का सार यह है कि ब्रज की गोपियां योगेश्वर श्रीकृष्ण पर मोहित होने के कारण उन्हें पति रूप में पाने के लिए इच्छुक थीं। वे जब यमुना तट पर एकत्र हुई, तभी वृंदादेवी उनके सामने एक तपस्विनी के रूप में आई। उन्होंने गोपियों को कात्यायनी देवी की आराधना का परामर्श दिया।

उन्होंने गोपियों को हेमंत ऋतु के प्रथम मास मार्गशीर्ष [अगहन] में पूरे महीने व्रत रखने को कहा, जिसमें केवल फलाहार किया जाता है। गोपियां नित्य सूर्योदय होने से पूर्व ब्रह्ममुहू‌र्त्तमें श्रीकृष्ण के नाम का जप करते हुए यमुना-स्नान करतीं। वे बालू से कात्यायनी माता की मूर्ति बनाकर उसे फल-फूल, धूप-दीप, नैवेद्य अर्पित करने लगीं। इस प्रकार ब्रज की कुमारियां विधि-विधान से जगदंबा की अर्चना में जुट गई।

कात्यायनी मंत्र
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गोपियां मां कात्यायनी की पूजा के बाद इस मंत्र का जप करने लगीं

ऊं कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी
नंदगोपसुतं देवि पति में कुरुतें नम:

हे कात्यायनी! महामाया! नंद गोप के पुत्र श्रीकृष्ण को हमारा पति बना दें। हम आपको प्रणाम करती हैं।

यह मंत्र

श्रीभागवत महापुराणके दशम स्कंध के 22वेंअध्याय का चौथा श्लोक है। कहते हैं कि कात्यायनी देवी के व्रत-अनुष्ठान से गोपियों की मनोकामना पूर्ण हुई। भगवान् श्री कृष्ण ने उनकी इ’छा पूरी करने के लिए पूर्णिमा की रात्री में महारास रचाया था, इसके बाद यह विधान कन्याओं के लिए मनोनुकूल वर पाने का साधन बन गया। आज भी युवतियां अपनी भावना के अनुरूप पति प्राप्त करने के लिए बडी श्रद्धा के साथ यह अनुष्ठान करती हैं।

कात्यायनी पीठ का पुनरोद्धार
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द्वापरयुगमें व्रज की गोपियों द्वारा पूजित कात्यायनी माता का शक्तिपीठ कलियुग में लुप्त हो गया। मां भवानी की प्रेरणा से स्वामी केशवानंद वृंदावन आए और उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह स्थान खोज निकाला। स्वामीजी ने राधाबागमें एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया। वर्ष 1923में माघी पूर्णिमा के दिन मां कात्यायनी की मूर्ति स्थापित की गई। इसके साथ ही गणेश, शिव, विष्णु और सूर्य की भी स्थापना हुई।

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