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नेत्र रोग के ज्योतिषीय कारण व उसके उपाय
किसी व्यक्ति की आंखों की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए कुंडली के दूसरे भाव का विचार किया जाता है। उसमें भी दायीं आंख के लिए दूसरा भाव और बायीं आंख के लिए द्वाद्श भाव को देखा जाता है। फिर भी विशेष रुप से दूसरा भाव आंखों के लिए खास तौर पर देखा जाता है।

अब हम यदि बात करें ग्रहों की तो सूर्य और चंद्र दोनों प्रकाश ग्रह है। इसलिए सूर्य से दायीं आंख और बायीं आंख का अध्ययन करने के लिए चंद्र की स्थिति देखी जाती है। इसलिए यदि कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य हों एवं बारहवें भाव में चंद्र स्थिति हो तो व्यक्ति को नेत्र रोग होने की संभावनाएं बनती है।

कुंड्ली के दूसरे भाव में मंगल की स्थिति को नेत्र स्वस्थता के अनुसार अनुकूल नहीं माना जाता है। इस भाव में यदि मंगल हो तो व्यक्ति को गंभीर नेत्र रोग दे सकता है। यहां मंगल की स्थिति व्यक्ति को नेत्र संबंधी शल्य चिकित्सा भी देती है, या फिर व्यक्ति को आजीवन चश्मा लगाना पड़ सकता है, या कांटेक्ट लैंस भी लगाना पड़ सकता है।

इसी प्रकार से दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रहों का होना, नेत्र रोगों का सूचक हो सकता है। नेत्र रोग होने के अन्य ज्योतिषीय नियम इस प्रकार से हैं-

जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र दूसरे स्थान में स्थित हों उस व्यक्ति की आंखे सुंदर और नेत्र ज्योति से युक्त होती है। परन्तु यदि दूसरे भाव के स्वामी की स्थिति कुंडली में कमजोर हो या वह त्रिकभावों में स्थिति हो तो नेत्र विषयों में शुक्र अपना पूर्ण फल नहीं दे पाता है।

दूसरे भाव में शनि की स्थिति हो तो व्यक्ति को आंखों से जुड़े रोग होने की संभावनाएं बनी रहती है। ऐसे व्यक्तियों की आई साईट बहुत वीक होती है।

बारहवें स्थान में राहु/केतु की स्थिति नेत्र संबंधित दुर्घटना होने की आशंका देती है।

टीवी, मोबाईल, प्रदूषण, बेकार खान पान कुछ ऐसी चीजें हैं जिनके चलते आजकल हर किसी की आंखें कमजोर हो जाती है। नतिजन उन्हें अच्छे से देखने के लिए चश्मे का सहारा लेना पड़ता है। चश्मे से आजादी पाने और आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए लोग कई तरह के उपाय करते हैं। कुछ उपाय ज्योतिष शास्त्र में भी बताए गए हैं। इन उपायों के आजमाने से न सिर्फ आंख की रोशनी बढ़ती है बल्कि हृदय संबंधित समस्याएं भी खत्म हो जाती है।

दरअसल ज्योतिष शास्त्र में स्वस्थ आंख और हृदय के लिए सूर्य को अहमियत दी गई है। सूर्य नेत्र का कारक ग्रह भी होता है। इसलिए ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आपकी कुंडली में सूर्य मजबूत होना चाहिए।

नेत्र ज्योति बेहतर करने के ज्योतिषीय उपाय

चाक्षुषोपनिषद पाठ

प्राचीन समय में ऋषि-मुनि बूढ़े हो जाते थे लेकिन फिर भी उनकी आंखें स्वस्थ रहती थी। ऐसा इसलिए कि वे चाक्षुषोपनिषद (चाक्षुषी विद्या) का पाठ करते थे। मान्यता है कि इसका पाठ करने से आंखों से संबंधित सभी विकार दूर हो जाते हैं। यह नेत्र की ज्योति बढ़ाने का कार्य भी करता है। इस पाठ को सूर्यदेव को जल अर्पित करने के बाद करना चाहिए।

तांबे के लोटे से सूर्य को जल

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तांबे के लोटे को सिर के पास रखें। अब सूर्यदेव को जल दें और उस गिरते जल से सूर्य की रोशनी को देखें। ऐसा करने से आंखों की रोशनी बढ़ेगी। साथ ही दिल की बीमारी भी नहीं होगी।

मीठा भोजन या फलाहार

ज्योतिष शास्त्र में रविवार का दिन सूर्य का दिन माना गया है। इसके अनुसार रविवार को मीठा भोजन या फलाहार करने से आंख की रोशनी और दिल को फायदा होता है। इस दिन नमक खाने से बचना चाहिए।

मंत्र का जप

‘ओम ह्रां ह्रीं हौं स: सूर्याय नम:’ यह सूर्य का तांत्रिक मंत्र है। इसका रोजाना 108 बार जप करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। ये जप आपको सूर्यदेव को जल देने के बाद करना है।

तांबे के बर्तन का पानी

रात को तांबे के बर्तन में पानी भर के रख दें। सुबह उसी पानी से आंखों में छीटें मारें। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक यह उपाय आपकी आंखों की रोशनी बढ़ा देगा। इसके अलावा आप तांबे के पात्र का पानी भी पी सकते हैं।

ईश्वर आराधना करते समय जलती हुई ज्योति को एकाग्राचित्त होकर देखें ।

पूजन करते समय नेत्र खुले रखें और ईश्वर प्रतिमा को निहारें।

उम्मीद करते हैं कि आपको यह सभी उपाय पसंद आए होंगे। इनकी खास बात यह है कि चाक्षुषोपनिषद पाठ को छोड़कर बाकी सभी उपाय आंखों के साथ साथ दिल की सेहत के लिए भी लाभकारी हैं।