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महाशिवरात्रि में भगवान शिवजी के साथ ही साथ वास्तु पुरुष की उपासना क्यों की जाती है ???

👉 वास्तु के देवता को वास्तु पुरुष कहा जाता है !!

👉 वास्तु पुरुष की उत्पत्ति भगवान शिवजी से हुवा है !!

👉 भगवान शिवजी की उपासना के साथ ही साथ वास्तु पुरुष की आराधना करने से घर मे सुख शांति और प्रशन्नता का वास होता है !!

👉 अक्सर आप में से कई लोगों ने देखा या सुना होगा कि वास्तु शास्त्र की वास्तु पुरुष की कल्पना भूखंड के एक ऐसे औंधे मुंह पड़े पुरुष के रूप में की जाती है !!

👉 जिसमें उस पुरुष का मुंह ईशान कोण वह पैर नेैऋृत्य कोण की ओर होते हैं। तथा उसकी भुजाएं व कंधे वायव्य कोण व अग्निकोण के ओर मुड़ी हुई रहती है।

👉 पर क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों वास्तु शास्त्र में ऐसे ही पुरुष की कल्पना की गई है, और कौन हैं ये वास्तु पुरुष।

👉 अगर नहीं तो चलिए आपको बताते हैं इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा जो हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक माने जाने वाले मत्स्य पुराण में वर्णित है।

👉 मत्स्य पुराण में उल्लेखित वास्तु पुरुष से जुड़ी कथा के अनुसार है कि एक बार की बात है देवताओं और असुरों में युद्ध हो रहा था।

👉 जिसमें राक्षसों की ओर से अंधकासुर और देवताओं की ओर से भगवान शिव शंकर युद्ध कर रहे थे।

👉 युद्ध में भगवान शिवजी की पसीने की कुछ बूंदे जब भूमि पर गिरी तो एक अत्यंत बलशाली और विराट पुरुष की उत्पत्ति हुई जिसने पूरी धरती को ढक लिया।

👉 इस विराट पुरुष से देवता तथा सभी असुर भी भयभीत होने लगे कि यह पुरुषों की ओर से है जबकि असुरों को लगा कि यह पुरुष नेताओं की तरफ से कोई नया देवता प्रकट हुआ है।

👉 इस विस्मय के कारण युद्ध थम गया और सभी देवता और असुर उस विराट पुरुष को पकड़कर ब्रह्मा जी के पास चले गए।

👉 देवताओं व असुरों के आग्रह करने पर ब्रह्मा जी ने उस पुरुष के बारे में बताया कि यह भगवान शिव और अंधकासुर के युद्ध के दौरान उनके शरीर से गिरे पसीने की बूंदों से प्रकट हुआ है जिस कारण इसे लोग धरतीपुत्र अर्थात वास्तु पुरूष के नाम से जानेंगे।

👉 कथाओं के अनुसार ब्रह्मदेव ने उस विराट पुरुष को संबोधित कर उसे अपना मानस पुत्र होने की संज्ञा दी और उसका नामकरण करते हुए कहा कि आज से तुम्हें संसार में वास्तु पुरुष के नाम से जाना जाएगा और तुम्हें इस के कल्याण के लिए धरती में समाहित होना पड़ेगा।
उस वास्तु पुरुष का वास धरती के अंदर होगा।

👉 इसके अलावा ब्रह्मदेव ने वास्तु पुरुष को यह वरदान दिया कि कोई व्यक्ति धरती के किसी भी भूभाग पर कोई भी मकान तालाब या मंदिर आदि का निर्माण करेगा तो उस समय उसे वास्तु पुरुष को ध्यान में रखना होगा तभी उसे अपने जीवन में सफलता और हर कार्य में सिद्धि प्राप्त होगी।

👉 जो तुम्हारा पूजन करके निर्माण का कार्य करेगा तो उसे अपने जीवन में किसी भी प्रकार की तकलीफ है और अड़चनों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

👉 मान्यता है कि ऐसा सुनकर वह वास्तु पूर्व धरती पर आया और ब्रह्मदेव के निर्देशानुसार एक विशेष मुद्रा में धरती में बैठ गया जिससे उसकी पीठ नेैऋृत्य कोण व मुख ईशान कोण में था।

👉 इसके उपरांत दोनों हाथों को जोड़कर पिता ब्रह्मदेव एवं धरती माता को नमस्कार करते हुए औंधे मुंह धरती में निवास कर गया।