बृहस्पति ग्रह से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं।गुरुपुष्य योग में इनकी पूजा करके जो कार्य प्रारम्भ करेंगे उसमें उन्हें सिद्धि प्राप्त होगी।. गुरु का अशुभ गोचर फल शिव पूजा से दूर हो जाता है। विशेषतः ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग तथा बृहस्पतीश्वर शिवलिङ्ग।
।। आंगिरस उवाच ।। 1।
जय शंकर शांत शशांकरुचे रुचिरार्थद सर्वद सर्वशुचे ।। शुचिदत्त गृहीत महोपहृते हृतभक्तजनोद्धततापतते ।। ततसर्वहृदंबर वरदनते नतवृजिनमहावन दाहकृते ।। कृतविविधचरित्रतनोसुतनो तनुविशिखविशोषणधैर्यनिधे ।। निधनादि विवर्जितकृतनतिकृत्कृतिविहितमनोरथपन्नगभृत् ।। नगभर्तृसुतार्पितवामवपुः स्वपुःपरिपूरितसर्वजगत् ।। त्रिजगन्मयरूपविरूपसुदृग्दूगुदंचनकुंचन कृतहुतभुक् ।। भवभूतपतेप्रमथैकपते पतितेष्वपिदत्तकरप्रसृते ।। प्रसूताखिलभूतलसंवरणप्रणवध्वनिसौधसुधांशुधर ।। वरराजकुमारिकया परया परितः परितुष्ट नतोस्मि शिव ।। शिवदेव गिरीश महेश विभो विभवप्रद गिरिश शिवेशमृड ।। मृडयोडुपतिश्र जगत्त्रितयं कृतयंत्रणभक्तिविघातकृताम् ।। न कृतांत त एष बिभेभि हरप्रहराशु महाघममोघमते ।। नमतांतरमन्यदवैनि शिवं शिवपादनतेः प्रणतोस्मि ततः ।। विततेऽत्र जगत लेऽघहरं हर तोषणमेव परं गुणवन् ।। गुणहीनमहीन महावलयं प्रलयांतकमीश नतोस्मि ततः ।। इति स्तुत्वा महादेवं विररामांगिरः सुतः ।। व्यतरच्च महेशानः स्तुत्या तुष्टो वरान्बहून् ।।
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